Wednesday 13 July 2011

INTAJAR


मैं तो भेजता रहूँगा
हमेशा उसको
‘ढाई आखर’ से पगे खत
अपने पीड़ादायक क्षणों से
कुछ पल चुराकर
उन्हें कलमबद्ध करता ही रहूँगा
कविताओं और कहानियों में
मैं सहेज कर रखूँगा
सर्वदा उन पलों को
जब आखिरी बार
उसने अपने पूरेपन से
समेट लिया था अपने में मुझे
और दूर कहीं
हमारे मिलन की खुशी में
चहचहाने लगी थी चिड़ियाएं
ऐसा नहीं है कि
मैं भूलने की कोशिश नहीं करता हूँ उसे
भूलने की उत्कट कोशिश करता हूँ
पर भूल कहाँ पाता हूँ उसे
इस असफल कोशिश में
वह और भी उत्कटता से
याद आती है मुझे
हँसता हूँ
लेकिन हँसते-हँसते
छलक पड़ती हैं ऑंखें
उससे हजारों मील दूर आ गया हूं
फिर भी
मन है कि मानता नहीं
घूम-फिरकर
चला जाता है उसी के पास
मैं जानता हूँ
अब वह नहीं आएगी
किन्तु दिल और आंखें
इस अमिट सत्य को
आज भी मानने को तैयार नहीं
वे आज भी
इंतजार करते हैं उसकी
और उसकी उन खतों क
जो कभी नहीं आएगा।

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